पहली बार दोस्तों ने मुंह फेरा, बेतुके फैसलों से नाजुक मोड़ पर मुल्क

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नई दिल्ली.  पाकिस्तान का आर्थिक संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तानी मीडिया में प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ और उनकी गठबंधन सरकार की आलोचनाएं बढ़ गई हैं। पाकिस्तान के मशहूर अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में विदेश मामलों के पत्रकार कामरान यूसुफ ने शहबाज शरीफ  के नेतृत्व वाली संकटग्रस्त गठबंधन सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है।

यूसुफ ने इस अखबार में लिखे एक आलेख में कहा है कि शहबाज शरीफ की सरकार पाकिस्तान की 23 करोड़ आबादी के लिए कठिन, अलोकप्रिय और दर्दनाक फैसले ले रही है। सरकार अपनी छोटी राजनीतिक पूंजी को बचाने में फंसी हुई है, जबकि देश की जनता त्राहिमाम कर रही है,जो देश के लिए अच्छी स्थिति नहीं है।

उन्होंने लिखा है कि यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान को इस तरह की आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा है। देश का इतिहास ऐसे संकटों से भरा पड़ा है लेकिन हर बार किसी तरह से देश ऐसे संकटों से उबरता रहा है। उन्होंने लिखा है कि ऐसा संकट पहली बार आया है, जब हम असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान पहली बार विकल्प विहीन नजर आ रहा है। उसके सारे विकल्प खत्म हो रहे हैं।

यूसुफ ने लिखा है, “अतीत में,पाकिस्तान ने दोस्तों की उदारता और मदद की बदौलत हर संकट और तूफान का सामना किया है। चाहे वह 1998 का ​​परमाणु विस्फोट के बाद की स्थितियां हों,जब अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध लगा दुए गए थे या 1999 में सैन्य तख्तापलट का नकारात्मक नतीजा रहा हो, हर बार हमें हमारे दोस्तों ने बचाया।” उन्होंने लिखा है कि 1998 के परमाणु विस्फोटों के बाद,सऊदी अरब चुपचाप तेल की आपूर्ति करता रहा और पेमेंट टालता रहा। इसने बाद में उन ऋणों को अनुदान में बदल दिया। चीन, यूएई और कतर अन्य मित्र देश हैं, जिन्होंने पाकिस्तान को जरूरत पड़ने पर हरसंभव मदद की है लेकिन अब वह सिलसिला खत्म होता दिख रहा है,और देश पहली बार आर्थिक रसातल में जा रहा है।

उन्होंने लिखा है कि सरकार के आर्थिक सलाहकारों ने इस आर्थिक संकट से निपटने के लिए विभिन्न विकल्पों की तरफ कदम बढ़ाए हैं। सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की कड़वी गोली लेने के लिए अनिच्छुक है और इसलिए,प्लान बी पर काम कर रही है। यह योजना वर्षों पुरानी है, जिसके तहत मित्र देशों से मदद ली जानी है लेकिन पहली बार पाकिस्तानी नीति निर्माताओं को बदली परिस्थितियों के बदलते हकीकत से हुआ है। मित्र देशों चीन,सऊदी अरब,संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अब पश्चिमी नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ एक मौन सहमति पर पहुंच गए हैं कि पाकिस्तान को मुफ्त बेलआउट प्रदान नहीं किया जाएगा। नकद अनुदान का समय अब समाप्त हो गया है।

उन्होंने लिखा है कि इस नीतिगत बदलाव के पीछे  आवश्यक आर्थिक सुधारों को लागू करने में पाकिस्तान की विफलता जिम्मेदार है। इसीलिए अब IMF के साथ बातचीत करना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि वाशिंगटन स्थित ऋणदाता अब पाकिस्तान के दोस्तों के साथ मिलकर काम कर रहा है।

यूसुफ ने पिछले दिनों दावोस के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में सऊदी के वित्त मंत्री के की-नोट एड्रेस और ब्लूमबर्ग को दिए उनके इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने वहां साफ किया कि  उनका देश विश्व बैंक और अन्य संस्थानों के साथ इस बात पर चर्चा कर रहा है कि पाकिस्तान को “मदद देने के लिए और अधिक रचनात्मक” कैसे हुआ जा सकता है। पाकिस्तानी पत्रकार ने कहा कि इसी तरह चीन भी पाकिस्तान को आईना दिखा रहा है कि कैसे उसे अंदरूनी हालात और आर्थिक कल-पुर्जे खुद-ब-खुद दुरुस्त करने हैं।

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